Wednesday, April 27, 2011

अजनबी...


चलो, एक बार फिरसे अजनबी बन जाए हम दोनों..
ना मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ.. दिल नवाजी की..
ना तुम मेरी तरफ देखो.. गलत अंदाज़ नजरोंसे..
ना मेरे दिल की धड़कन लडखडाये मेरी बातों से..
ना ज़ाहिर हो.. तुम्हारी कश्मकश का ऱाज नजरों से..
तुम्हे जो कोई अंजुमन रोकती है पेश कदमी से..
मुझे भी लोग कहते हैं के यह जलवे पराएँ हैं..
मेरे हमराह भी रुसवायें हैं मेरे माजी के,
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के सायें हैं .
तारीफ़ रोग हो जाए तो उसका भूलना बेहतर ,
ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसका तोडना अच्छा...
वोह अफसाना जिससे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन ,
उससे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
चलो, एक बार फिरसे अजनबी बन जाए हम दोनों..

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