Friday, April 1, 2011

यादें.. ( I )

कुछ यह है की मुद्दतों से हम भी नहीं थे रोए..
कुछ जहन में उलझा था अहबाब का दिलासा...
फिर यूँ हुआ..
के सावन आँखों में आ बसे थे...
फिर यूँ हुआ..
के दिल भी था अबला सा..
अब सच कहें तो यारो हमको खबर नहीं थी...
बन जायेगा क़यामत एक वाकिया ज़रा सा...
तेवर थे बेरुखी के.. अंदाज़ थे दोस्ती के..
वोह अजनबी थे लेकिन लगते थे अपने से...
हम दश्त थे के दर्या....
हम जहर थे के अमृत..
नाहक था जहम हमको.. जब वोह नहीं थे प्यासे..
हम ने भी इसको देखा.. कल शाम इत्तफाक से...

इतनाही कह पाए हक से...
अपने भी हाल है लोगो.. अब इस "omi" से

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