Thursday, March 3, 2011

Cycle of Replacement.. ( Part # 1 )


कभी कभी यूँही बैठे बैठे...
एक आम से दिन में दिल फिर से टूटता है
Just when you think you have forgotten all the sweet nothings, and the memories of the pretentious fights, it all comes back to you in a venue you least expect to serve as a reminder.

आज न-जाने बैठे बैठे वह यादें कहाँ से वापिस आ गयी ...
वह मसनूई घुस्सा, वोही बिना-वजह के नखरे..

पता नहीं कितने सालों से हर वक़्त उनसे अपने नखरे उठवाते रहना, उनसे उलटी सीधी फरमाइशे करते रहना... मेरा सबसे पसंदीदा मश्घला बन चुका था...
ज़रा ज़रा सी बात पर उनका नाराज़ हो कर चल पड़ना और फिर कुन-अखियों से देखना के वो पीछे आऐं या नहीं...

मेरा खियाल था यह बचपना वक़्त के साथ साथ ख़तम हो ही जायेगा…
पर शायद कुछ आदतें कभी आप का पीछा नहीं छोडती हैं…
वक़्त बदल जाता है…
आप बदल जाते हो…
पर कुछ चीज़ें बस सताती करती ही रहती हैं...
हमेशा...

यह सच है....cycle of replacement में मुहब्बत की replacement नहीं होती .

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